आत्मा को अपने हाथों से धोना चाहिए.
इसलिए नहीं कि वह बहुत नाजुक होती है
और रंग छोड़ती है.
इसके उलट, वह बेहद मजबूत कपड़े से बनी होती है
और उसे साफ करने का एक ही तरीका है कि
उसे हाथों से धोया जाए.
एक घरेलू साबुन लें- अच्छा होगा कि सबसे सस्ता वाला.
ब्लीच, फैब्रिक सॉफ्टनर- ये सब भूल जाइए,
किसी आत्मा को इनकी ज़रूरत नहीं होती.
थोड़ी देर तक उसे भिगोकर रखिए
ताकि जिद्दी दाग हट जाएं,
हट जाएं तेल, कीचड़, चटनी-सॉस के निशान भी.
फिर उसे रगड़िए, निचोड़िए
और सूखने के लिए धूप में टांग दीजिए.
इस्तरी करने की कोई ज़रूरत ही नहीं है.
अगर इस तरह से धोएंगे,
तो आप बरसों बरस पहन सकते हैं अपनी आत्मा.
यह जो आपकी देह है न, यही दुनिया है —
यह एक अड़ियल स्कूल है
और आत्मा
इसका आदर्श यूनिफॉर्म।
*
अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
25 अप्रैल 1970 को जन्मी आद्रियाना लिस्बोआ, ब्राजील की सबसे चर्चित लेखिकाओं में से हैं। पुर्तगाली भाषा में उनके कई उपन्यास व एक कविता-संग्रह प्रकाशित हैं। उनकी कविताएं दुनिया की कई बड़ी पत्रिकाओं में छपकर मक़बूल हुई हैं। आद्रियाना ने अपने कला-जीवन की शुरुआत गायन व संगीत से की, फिर धीरे-धीरे लेखन की ओर आ गईं। यह हिंदी संस्करण एलिसन एंत्रेकिन के अनुवाद पर आधारित है।